आपकी संपत्ति पर ऐसी क्या आफत आई कि CJI समेत 9 जजों की संविधान पीठ को देना पड़ा फैसला? समझिए

क़ानून / फैसले

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की संविधान पीठ ने बीते 5 नवंबर को कहा कि सरकार सभी निजी संपत्तियों को समुदाय के भौतिक संसाधन मानकर उनका अधिग्रहण और फिर से बंटवारा नहीं कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक फैसला संविधान के अनुच्छेद 39(बी) पर सुनवाई के दौरान दिया है। दरअसल, पीठ के सामने 2 अहम मुद्दे थे। पहला, क्या अनुच्छेद 31-C संशोधनों और संशोधनों को रद्द करने वाले अदालती फैसलों के बावजूद मौजूद है। यह अनुच्छेद संपत्ति के अधिकार से संबंधित है। दूसरा मसला संविधान के अनुच्छेद 39-B की व्याख्या से जुड़ा था। इस पीठ में चीफ जस्टिस यानी CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस हृषिकेश रॉय, जसटिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में इस पर बात पर जोर दिया गया कि हम संपत्ति, संपत्ति के मालिक होने के अधिकार और बड़े पैमाने पर समाज के साथ इसके संबंध को कैसे समझते हैं। यह फैसला 7:2 के बहुमत से आया। जस्टिस नागरत्ना और जस्टिस धूलिया ने अलग फैसला दिया।

संविधान का अनुच्छेद 31-C क्या कहता है?

सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत के अनुसार, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 31-C मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों से संबंधित है। यह अनुच्छेद 25वें संविधान संशोधन, 1971 द्वारा शामिल किया गया था। अनुच्छेद 31-C सामाजिक लक्ष्यों को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए कानूनों को संरक्षण देता है। यह अनुच्छेद 39-B और 39-C के तहत बनाए गए कानूनों को सुरक्षा देता है। इसका मकसद राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को समता के अधिकार (अनुच्छेद 14) और अनुच्छेद 19 के तहत अधिकारों से चुनौती से बचाना है।

इंदिरा के एक फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने दिया झटका

संविधान का अनुच्छेद 31-C तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी 1969 में तब लेकर आई थीं, जब अदालत ने बैंकों के राष्ट्रीयकरण के फैसले को रद्द कर दिया था। अनुच्छेद 31-C कहता है कि अगर संपत्ति को लोगों की भलाई के लिए अधिग्रहित किया जाता है, तो वह समानता जैसे मौलिक अधिकारों का हनन नहीं करता है। 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने अनुच्छेद 31-C का दायरा बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। तभी से यह रस्साकसी जारी थी।

क्या है संपत्ति का अधिकार, क्या है स्थिति

अनुच्छेद 31-A, 39-B और 31-C संपत्ति के अधिकार से जुड़े हैं और ये मौलिक अधिकारों के अपवाद हैं। संपत्ति के अधिकार को शुरू में भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(f) और अनुच्छेद 31 के तहत एक मूल अधिकार के रूप में मान्यता दी गई थी। 44वें संवैधानिक संशोधन (1978) के जरिए संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटा दिया गया था। इस संशोधन के तहत एक नया प्रावधान अनुच्छेद 300-A शामिल किया गया, जिसने संपत्ति के अधिकार को मूल अधिकार के बजाय विधिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया।