सूरजपुर । सुबह की चहल-पहल में छिपी मौत की साये ने एक झटके में तीन मासूम मजदूरों की जिंदगी छीन ली। नैनपुर के मित्तल कोल्ड स्टोरेज (एवं राइस मिल) में करीब दस बजे अचानक जर्जर दीवार ढह गई, जिसकी चपेट में आकर होल सिंह , माने और वेद सिंह की सांसें थम गईं। वहीं, सुरेंद्र सिंह गंभीर रूप से जख्मी हैं, जो अस्पताल में मौत से जूझ रहे हैं।
ये सभी सूरजपुर जिले के ही निवासी थे, जिनके घरों में अब मातम का सन्नाटा पसर गया है—एक चिराग बुझा, तो पूरे परिवार की उम्मीदें धूल में मिल गईं। यह हादसा महज एक दुर्घटना नहीं, बल्कि लापरवाही का काला अध्याय है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि प्रबंधन ने सुरक्षा के नाम पर खिलवाड़ किया। शासन की निर्धारित गाइडलाइंस जैसे दीवारों की मजबूती जांच, मजदूरों के लिए सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाएं-कहां हैं..? जर्जर निर्माण को अनदेखा कर मजदूरों को मौत के मुंह में धकेल दिया गया। 
ये तो रोज की मजदूरी के लिए निकले थे, घर लौटने का वादा करके। अब कौन संभालेगा इनके बच्चों को, बूढ़े मां-बाप को..? दरअसल एक प्रत्यक्षदर्शी के शब्दों में छिपी है वह दर्द, जो हर गरीब मजदूर परिवार की कहानी है। मृतकों के परिजन आंसुओं में डूबे चिल्ला रहे हैं, हमारा कोई गुनाह नहीं, बस दो वक्त की रोटी कमाने का सपना था।हादसे के बाद परिसर में अफरा-तफरी मच गई। अन्य कर्मचारियों और ग्रामीणों ने हिम्मत दिखाई, मलबे से घायल सुरेंद्र को खींचकर अस्पताल पहुंचाया। पुलिस ने शवों को परिजनों की मौजूदगी में पोस्टमार्टम के लिए भेजा, जबकि जांच की कमान संभाली। लेकिन सवाल वही पुराने-क्या मिल संचालक की लापरवाही को अब भी ढकने की कोशिश होगी..?
स्थानीय सरपंच पति सुखल सिंह ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा, पारदर्शी जांच हो, दोषी पर कड़ी कार्रवाई। वरना उचित मुआवजा न मिला तो ग्रामीण सड़कों पर उतरेंगे। परिवारजन भी एकजुट हैं—मुआवजे की मांग के साथ न्याय की गुहार लगा रहे हैं, वरना आंदोलन की चिंगारी भड़क सकती है।
वहीं दूसरी तरफ घटना की सूचना मिलने पर प्रशासन ने तुरंत संभाला मोर्चा। वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक प्रशांत ठाकुर, कलेक्टर एस. जयवर्धन, एसडीएम शिवानी जायसवाल, तहसीलदार सूर्यकांत साय समेत अधिकारी मौके पर डेरा डाले हैं। बड़ी संख्या में थानों-चौकियों से फोर्स तैनात कर कानून-व्यवस्था कायम रखी जा रही।
सूत्रों की मानें तो प्रारंभिक जांच में दीवार की कमजोरी साफ नजर आ रही, लेकिन असली सवाल सुरक्षा नियमों की अवहेलना पर है। घटनाक्रम पर जिला प्रशासन ने कहा है यदि लापरवाही साबित हुई, तो संचालक पर कानूनी एक्शन बेशक होगा । साथ ही नियमानुसार मुआवजा देने की बात भी कही गई है लेकिन यह दर्दनाक घटना सिर्फ चार जिंदगियों का सवाल नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की पोल खोलती है। मजदूरों के लिए कार्यस्थल पर सुरक्षा, सुविधाएं-ये तो बुनियादी हक हैं, न कि दान। यदि प्रबंधन ने समय रहते जिम्मेदारी निभाई होती, तो आज ये परिवारों के घर खुशियां लौट आतीं। अब जरूरी है कि यह हादसा सबक बने, ताकि कोई और ‘चिराग’ न बुझे, कोई और मां न रोए।
