डॉ. आंबेडकर ने लिखा है कि ब्राह्मणों-द्विजों की महिला संबंधी तीन बदत्तर प्रथाओं- सती प्रथा, विधवा प्रथा और बाल विवाह में से दो को तो पिछड़े-दलितों ने नहीं अपनाया, लेकिन तीसरी प्रथा को उनका नकल करके अपना लिया-
ब्राह्मणों-द्विजों के ब्राह्मणवाद और दलितों-पिछड़ों के ब्राह्मणवाद में जमीन-आसमान का अंतर रहा है और है, यह भी सबूत है
वर्ण-जाति व्यवस्था के लिए अनिवार्य था कि ब्राह्मण अपनी श्रेष्ठता कायम रखने के लिए या अपनी तथाकथित शुद्धता-पवित्रता बनाए रखने के लिए अपनी महिलाओं को गैर-ब्राह्मणों, विशेषकर गैर-द्विजों शादी करने से रोकें। मनु भी इसे रोकने के लिए कठोर प्रावधान किया है।
आंबेडकर ने करीब 24 साल की उम्र में ही अपने रिसर्च पेपर ( 1916) ‘भारत में जातियां: उनका तंत्र, उत्पत्ति और विकास’ में लिखा है कि जाति से बाहर ब्राह्मणों की महिलाएं शादी न कर लें, इसको रोकने के लिए ही सती प्रथा, विधवा विवाह पर रोक और बाल विवाह शुरू किया।
ब्राह्मणों-द्विजों की इन तीन घिनौनी प्रथाओं में दो की नकल दो पिछड़े-दलितों ने नहीं किया, लेकिन ब्राह्मणोंं-सवर्णों की नकल करते हुए बाल विवाह की प्रथा अपना लिया।
कभी भी पिछड़े-दलितों में सती प्रथा और विधवा विवाह पर रोक जैसी घिनौनी प्रथा नहीं रही है। हां बाल विवाह की घिनौनी प्रथा ब्राह्मणों-द्विजों की नकल करके अपनाने के दोषी पिछड़े-दलित रहे हैं।
इतिहास और समाजशास्त्र की किताबों में पढ़ाया जाता है कि भारत में सती प्रथा, विधवा प्रथा रही है, जबकि पढाया यह जाना चाहिए कि ब्राह्मणों-द्विजों ( सवर्णों) में यह प्रथा रही है।
इतिहास और समाजशास्त्र की किताबों में यह लिखकर की भारत में ये प्रथाएं रहीं हैं, सभी भारतीयों को कलंकित किया जाता है,इस प्रथा के लिए। सबको बदनाम किया जाता है, जबकि ये दोनों प्रथाएं सिर्फ सवर्णों में रही हैं। दलितों-पिछड़ों ने कभी इन दोनों घिनौनी प्रथाओं को अपनाया नहीं था। फिर उनको क्यों बदनाम किया जा रहा है।
हां दलित-पिछड़े ब्राह्मणवाद की बाल विवाह की प्रथा को अपनाने के दोषी हैं। इस मामले में उन्हें ब्राह्मणों-द्विजों की नकल नहीं करनी चाहिए थी।
किताबों में बदलाव करके सच्ची बात लिखी जानी चाहिए। झूठी बात नहीं पढाई जानी चाहिए।
ब्राह्मणों-द्विजों के ब्राह्मणवाद और दलित-पिछड़ों के ब्राह्मणवाद में जमीन- आसमान का अंतर रहा है और है।