भरत शर्मा की रिपोर्ट
रतलाम । जैन सोश्यल ग्रुप रतलाम सेन्ट्रल द्वारा रंग पंचमी के पावन अवसर पर रंगारंग रंगोत्सव हास्य कवि-सम्मेलन का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम ग्रुप अध्यक्ष आशीष लुनिया के अध्यक्षीय उद्बोधन के देर रात तक चलने वाले हास्य कवि-सम्मेलन में श्रोताओं ने हास्य कविताओं भरपूर रसास्वादन किया कवि-सम्मेलन का प्रारंभ कवयित्र महिमा दवे की सरस्वती वंदना से हुआ। उसके पश्चात रतलाम के प्रसिद्ध हास्य कवि- धमचक मुलथानी ने अपनी चितपरिचित शैली से अपनी हास्य कविताओं से अंत खूब ठहाके लगाये। उन्होने अपनी कुछ कुछ होता है कविता सुनाते हुए व्यक्त किया-
मैने एक बुढ़ी अम्मा से पूछा- माताजी
क्या तुम्हे कुछ कुछ होता है
वह अपने पापलो मुह से बोली- मुंह में दोत नही पेट में आत नहीं
इस बुढापे मे किसी का साथ नही
यह बुढा मन हंसता है न रोता है
इस बुढ़े शरीर में सब जगह से कुछ कुछ होता है
माताओं की मांग पर उन्होंने अपनी मालेवी की प्रसिद्ध कविता है यरी जात की भी सुनाई दुबले पतले शरीर के एकाकी कवि नन्दकिशोर अकेला ने अपनी दुर्बल काया को इंगित करते हुए श्रोताओं को हसने पर मजबूर किया। उन्होंने कहा- होसला जीने का जो कदम दर कदम रखता है पराये गम से जो आंख अपनी नम रखता है खुल के ठहाके लगा सकता है बस एक वही जो अपने सीने मे गम छुपाने का दम रखता है । अपनी क्षणिकाओ से हंसाने वाले हास्य कवि कमलेश दवे सहज ने श्रोताओ को खूब गुदगुदाया उन्होंने कहा- जो इन्सान वादे करते हैं व उनको निभाते है मेहनत करके अपनी राहे स्वयें बनाते उनका वन्दन और गुणगान करना चाहिये उनको देख कर चाद सितारे भी मुस्कराते है। मालवी भाषा के हास्य कवि गोपाल घुरंधर ने ग्रामीण परिवेश में होने वाले हास परिहास से श्रोताओ का भरपूर मनोरंजन किया। उन्होने चिन्तन की कविता सुनाते हुए कहा- गोपाल धुरंधर का सीधा तर्क है.
जिस घर बेटी नही वह घर नर्क है।
उक्त जानकारी देते हुए ग्रुप के प्रचार सचिव मनोजलोढ़ा ने बताया कि ग्रुप के उपाध्यक्ष विरेन्द्रजी सकचेला, सचिवद्वय अभयजी कोठारी, चितरंजनजी लुणावत व राजेन्द्रजी कोठारी, श्रीमती मधुजी मांडोत, अनीलजी पीपाड़ा, महेन्द्रजी नाहर, राजेशजी चोपड़ा, अल्पेशजी लोढ़ा, प्रफुलजी लोढ़ा, मनोजजी कटारिया, प्रमोदजी लोढ़ा, निर्मलजी मेहता, ललितजी पटवा, ललितजी दख, राकेशजी नाहर, पारसजी माण्डोत, सुजानजी खिमेसरा, कमलेशजी कोठारी, मंगलजी मूणत, सतीशजी कोठारी, गिरिशजी लोढ़ा, शांतीलालजी मूणत, बाबूलालजी सेठिया, रमेशजी गदिया, मुकेशजी मांडोत, संदेशजी चौरड़िया आदि अनेक जनसमूह नें रंग पंचमी के पावन त्यौहार को हास्य से भरपूर कवि सम्मेलन व रंग-अबीर-गुलाल से खेल कर मनाया ।