सूरजपुर। बाल दिवस पर जहां स्कूलों और संस्थानों में रंग-बिरंगी प्रस्तुतियाँ, सेल्फियां और उत्सव का माहौल था, वहीं शहर की सड़कों पर एक दर्दनाक सच्चाई सबके सामने मुंह चिढ़ा रही थी। मुख्य चौक-चौराहों पर फटे कपड़ों में भीख मांगते मासूम बच्चे और गोद में शिशुओं को लेकर भटकती महिलाएं इस बात का प्रमाण हैं कि सरकारी योजनाएं कागजों से बाहर निकल ही नहीं पा रहीं। एसी कमरों में फाइलें तो घूमती हैं, लेकिन इन बच्चों को दो वक्त की रोटी और शिक्षा तक नहीं मिल पा रही।
मजबूरी की मार: गरीबी और उपेक्षा ने बच्चों को भिक्षावृत्ति में धकेला
Aaj24.in की टीम ने बिना कैमरे के बच्चों और महिलाओं से बात की। कैमरा देखते ही चेहरा छिपा लेने वाले इन परिवारों ने बताया कि 100–200 रुपये ही दिनभर की आय है, उसी से घर चलता है। बच्चों के पास न स्कूल की फीस है, न कॉपी-किताब। काम तलाशने जाते हैं तो “उम्र कम” कहकर लौटा दिया जाता है।
ज्यादातर लोग भैयाथान क्षेत्र के समोली गांव के बसोर समुदाय से हैं। पहले बांस कारीगरी से रोजी चलती थी, लेकिन प्लास्टिक और मशीनों ने उनका रोजगार खत्म कर दिया। सरकारी योजनाएं वहाँ तक नहीं पहुँचीं, नतीजा—भिक्षावृत्ति ही मजबूरी बन गई।
ICPS का करोड़ों का बजट, लेकिन ज़मीनी हकीकत खोखली
जिले में ICPS के तहत बच्चों की सुरक्षा, रेस्क्यू और पुनर्वास के लिए हर साल भारी बजट आता है, लेकिन धरातल पर न तो प्रभावी रेस्क्यू, न FIR, न पुनर्वास की व्यवस्था दिखती है।
सबसे गंभीर सवाल—वर्षों से एक ही पद पर जमे अधिकारी राजनीतिक संरक्षण में अपनी “सक्रियता” की तस्वीरें तो दिखाते हैं, पर सिस्टम पूरी तरह पंगु नजर आता है।
पिछले वर्ष प्रेमनगर क्षेत्र में धनुहार जनजाति के बच्चों को तस्करी से बचाया गया था, लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि तस्करों पर अब तक FIR तक दर्ज नहीं हुई और वे आज भी खुलेआम घूम रहे हैं।
हमर उत्थान सेवा समिति की कड़ी आपत्ति और माँगें
समिति अध्यक्ष चंद्र प्रकाश साहू ने कहा—
“बाल दिवस तभी सार्थक होगा जब हर बच्चे को शिक्षा और सुरक्षा मिले। योजनाएं नहीं, ज़मीन पर कार्रवाई चाहिए।”
समिति ने माँगे रखीं—
- तत्काल रेस्क्यू अभियान शुरू किया जाए
- जेजे एक्ट के तहत FIR दर्ज की जाए
- पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच
- वर्षों से जमे अधिकारियों का तत्काल ट्रांसफर
सूरजपुर की सड़कें आज भीख मांगते बच्चों के बहाने यह सवाल पूछ रही हैं—
“बाल दिवस की चमक के पीछे छिपी यह भयावह सच्चाई आखिर कब खत्म होगी?”
