“जाति पूछकर अपमान, बाल कटवाए, नाक रगड़वाई: धर्म के नाम पर दलित-पिछड़ों को कब तक अपमानित करेंगे?”
उत्तर प्रदेश के इटावा ज़िले के दान्दरपुर गांव (बकेवर क्षेत्र) में चल रही भागवत कथा में उस समय सनसनी फैल गई जब कथावाचक और उनके सहायकों से उनकी जाति पूछी गई, और पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) वर्ग से होने पर कथावाचक के साथ अभद्र व्यवहार किया गया।
सूत्रों के अनुसार — कथावाचक से न केवल नाक रगड़वाई गई, बल्कि जबरन बाल भी कटवा दिए गए, और इलाके में तथाकथित “शुद्धिकरण” करवा कर उन्हें अपमानित किया गया।
यह कोई पहला मामला नहीं है।
कुछ ही दिन पहले वाराणसी में एक यादव समाज के कथावाचक को केवल इसलिए सार्वजनिक क्षमा मांगनी पड़ी, क्योंकि उन्होंने धार्मिक मंच पर ब्राह्मण वर्चस्व को “चुनौती” दी थी। उस घटना ने ही देशभर में बहस छेड़ी थी कि क्या धर्म पर केवल एक जाति का अधिकार है?
अखिलेश यादव का तीखा बयान:
“हमारा संविधान जातिगत भेदभाव की अनुमति नहीं देता है, ये व्यक्ति की गरिमा और प्रतिष्ठा से जीवन जीने के मौलिक अधिकार के विरुद्ध अपराध है।”
“अगर 3 दिन में कार्रवाई नहीं हुई, तो पीडीए के मान-सम्मान के लिए बड़ा आंदोलन किया जाएगा।
पिछड़ों की धार्मिक भागीदारी से डर क्यों?
ध्यान देने वाली बात यह है कि जब पिछड़ा या दलित समाज का व्यक्ति धार्मिक मंच पर दिखाई देता है — चाहे कथा कह रहा हो या पूजा करवा रहा हो — तो कट्टरपंथी मानसिकता वाले लोग उसे “सीमा पार” करता मान लेते हैं।
यह घटना दर्शाती है कि धर्म के क्षेत्र में जाति आधारित असमानता आज भी जीवित है, और उसका सबसे गंदा रूप तब सामने आता है जब वर्चस्ववादी ताकतें एक सशक्त, आत्मविश्वासी पिछड़े व्यक्ति को अपमानित करने की ठान लेती हैं।
लोगों की माँग
1. पीड़ित कथावाचक को न्याय दिया जाए।
2. सभी दोषियों की तत्काल गिरफ्तारी हो।
3. धार्मिक कार्यक्रमों में जाति पूछना दंडनीय अपराध घोषित किया जाए।
4. सरकार यह स्पष्ट करे कि धर्म पर सभी नागरिकों का समान अधिकार है — चाहे उनकी जाति कुछ भी हो।