सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने परंपरा तोड़कर जस्टिस त्रिवेदी के लिए विदाई समारोह आयोजित नहीं किया; उनके कार्यकाल के विवादास्पद फैसलों ने देशभर में चर्चा को जन्म दिया।
दिनांक: 17 मई 2025
लेखक: [न्यूज़ डेस्क/विशेष संवाददाता]नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना में, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) ने रिटायर्ड जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी के लिए परंपरागत विदाई समारोह आयोजित न करने का फैसला किया। इस निर्णय की भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई ने शुक्रवार को कड़ी निंदा की।
जस्टिस त्रिवेदी, जिनका कार्यकाल उनके कुछ विवादास्पद फैसलों और उनकी नियुक्ति प्रक्रिया पर सवालों के कारण चर्चा में रहा, ने सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल को कई मायनों में असाधारण बनाया।SCBA का अभूतपूर्व निर्णय और CJI की प्रतिक्रियापरंपरा के अनुसार, SCBA सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जजों के सम्मान में विदाई समारोह आयोजित करता है, जिसमें बार और बेंच के सदस्य एकत्र होकर जज के योगदान को सराहते हैं। हालांकि, जस्टिस त्रिवेदी के मामले में SCBA ने इस परंपरा से हटकर कोई समारोह आयोजित नहीं किया। सूत्रों के अनुसार, यह निर्णय जस्टिस त्रिवेदी के कार्यकाल के दौरान उनके कुछ फैसलों और उनके प्रति वकील समुदाय के एक वर्ग की नाराज़गी को दर्शाता है।
CJI गवई ने इस फैसले को “अनुचित” और “संस्थागत परंपराओं के खिलाफ” बताते हुए कहा, “सुप्रीम कोर्ट एक ऐसा संस्थान है जो अपनी गरिमा और परंपराओं के लिए जाना जाता है। किसी भी जज के प्रति व्यक्तिगत असहमति को संस्थागत निर्णयों में हावी नहीं होने देना चाहिए।” CJI की यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के भीतर बढ़ते तनाव को उजागर करती है।SCBA ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है, लेकिन वकील समुदाय के कुछ सदस्यों ने इसे “मौन विरोध” के रूप में देखा है। एक वरिष्ठ अधिवक्ता, जो नाम न छापने की शर्त पर बोले, ने कहा, “जस्टिस त्रिवेदी के कुछ फैसलों ने बार के एक बड़े वर्ग को निराश किया था। यह निर्णय उस नाराज़गी का प्रतीक हो सकता है।”जस्टिस बेला त्रिवेदी: एक विवादास्पद कार्यकालगुजरात के एक प्रमुख वकील परिवार से ताल्लुक रखने वाली जस्टिस बेला त्रिवेदी ने अपने करियर की शुरुआत गुजरात हाई कोर्ट में वकालत से की। वे वर्ष 2004 में गुजरात सरकार में कानून सचिव नियुक्त हुईं, जब नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री थे। बाद में, वे गुजरात हाई कोर्ट की जज बनीं और 2021 में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त हुईं। उनकी यह नियुक्ति कई मायनों में चर्चा का विषय रही, क्योंकि वे किसी भी हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश नहीं रही थीं, जो सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए एक सामान्य प्रथा रही है।जस्टिस त्रिवेदी के कार्यकाल के दौरान उनके कुछ फैसलों ने देशभर में तीखी प्रतिक्रियाएँ बटोरीं। इनमें से कुछ प्रमुख मामले निम्नलिखित हैं:त्रिपुरा दंगों से संबंधित UAPA मामले: जस्टिस त्रिवेदी की अगुवाई वाली पीठ ने त्रिपुरा दंगों की तथ्यान्वेषी रिपोर्ट तैयार करने वाले पत्रकारों और वकीलों के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत कार्रवाई को चुनौती देने वाली याचिकाओं की सुनवाई की। इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार को पत्र लिखकर इन मामलों को उनकी पीठ को “मनमाने ढंग से” सौंपने पर आपत्ति जताई थी। भूषण ने तर्क दिया कि यह सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 और प्रक्रिया हैंडबुक के खिलाफ था, क्योंकि लंबित मामलों को वरिष्ठ पीठासीन जज को सौंपा जाना चाहिए।अन्य संवेदनशील मामले: जस्टिस त्रिवेदी की पीठ को कई ऐसे मामले सौंपे गए, जो सरकार के खिलाफ थे, जैसे नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और कुछ हाई-प्रोफाइल आपराधिक मामलों से संबंधित याचिकाएँ। इन मामलों में उनके फैसलों को कुछ वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने “सरकार के पक्ष में झुका हुआ” करार दिया। हालांकि, इन आरोपों के समर्थन में ठोस सबूत सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं हैं।न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल: पूर्व CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ के कार्यकाल में जस्टिस त्रिवेदी की पीठ को कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई सौंपने पर वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और अभिषेक मनु सिंघवी ने सार्वजनिक रूप से आपत्ति जताई थी। दवे ने एक साक्षात्कार में कहा था, “सुप्रीम कोर्ट में मामलों का आवंटन पारदर्शी और नियमों के अनुसार होना चाहिए। किसी खास जज को बार-बार संवेदनशील मामले देना सवाल खड़े करता है।”जनता में नाराज़गी और सामाजिक मीडिया पर प्रतिक्रियाएँजस्टिस त्रिवेदी के फैसलों ने न केवल वकील समुदाय, बल्कि आम जनता और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच भी असंतोष को जन्म दिया। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, खासकर X पर, उनके कुछ फैसलों को लेकर तीखी आलोचना देखी गई। कई यूज़र्स ने उनके फैसलों को “नागरिक स्वतंत्रता के खिलाफ” और “राजनीतिक दबाव में लिया गया” करार दिया। एक X पोस्ट में, एक यूज़र ने लिखा, “जस्टिस त्रिवेदी के फैसलों ने सुप्रीम कोर्ट की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं। SCBA का यह कदम जनता की भावनाओं को दर्शाता है।”हालांकि, कुछ वकीलों और विश्लेषकों ने इस तरह की आलोचनाओं को “अनुचित” और “न्यायपालिका की गरिमा के खिलाफ” बताया। एक वरिष्ठ वकील ने कहा, “किसी जज के फैसलों से असहमति हो सकती है, लेकिन व्यक्तिगत हमले और उनकी निष्ठा पर सवाल उठाना खतरनाक प्रवृत्ति है।”नियुक्ति और कार्यकाल पर सवालजस्टिस त्रिवेदी की सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति पर शुरू से ही सवाल उठे। आलोचकों ने तर्क दिया कि उनकी नियुक्ति में “राजनीतिक प्रभाव” की भूमिका थी, क्योंकि वे गुजरात सरकार में कानून सचिव के रूप में कार्य कर चुकी थीं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनकी नियुक्ति को मंजूरी दी थी, और उनके समर्थकों का कहना है कि उनकी कानूनी योग्यता और अनुभव ने उन्हें इस पद के लिए उपयुक्त बनाया।उनके कार्यकाल के दौरान, कुछ वकीलों ने यह भी आरोप लगाया कि उनकी पीठ को जानबूझकर ऐसे मामले सौंपे गए, जो सरकार के लिए संवेदनशील थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों को कभी आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया।न्यायपालिका में पारदर्शिता की मांगजस्टिस त्रिवेदी का मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में मामलों के आवंटन और जजों की नियुक्ति में पारदर्शिता की आवश्यकता को रेखांकित करता है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा, “न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि मामलों का आवंटन नियमों के अनुसार हो और उसमें कोई मनमानी न हो।”कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि SCBA का यह निर्णय, हालांकि विवादास्पद, सुप्रीम कोर्ट के भीतर और बाहर चल रही बहस को और तेज करेगा। एक विशेषज्ञ ने कहा, “यह घटना सुप्रीम कोर्ट के लिए आत्ममंथन का अवसर है। बार और बेंच के बीच विश्वास को मजबूत करने की जरूरत है।”आगे की राहजस्टिस त्रिवेदी की विदाई और SCBA के निर्णय ने सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली पर एक नई बहस छेड़ दी है। यह पहली बार नहीं है जब सुप्रीम कोर्ट के किसी जज के कार्यकाल पर इस तरह के सवाल उठे हैं, लेकिन SCBA का यह कदम अभूतपूर्व है। आने वाले दिनों में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुप्रीम कोर्ट और SCBA इस स्थिति को कैसे संभालते हैं।CJI गवई ने अपनी टिप्पणी में संकेत दिया है कि वे इस मामले को गंभीरता से ले रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, CJI इस मुद्दे पर SCBA के साथ चर्चा कर सकते हैं ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके।निष्कर्षजस्टिस बेला त्रिवेदी का कार्यकाल और उनकी विदाई पर हुआ विवाद सुप्रीम कोर्ट के सामने मौजूद चुनौतियों को दर्शाता है। एक ओर, न्यायपालिका को अपनी स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखना है, वहीं दूसरी ओर, उसे जनता और वकील समुदाय के विश्वास को भी जीतना है। SCBA का यह निर्णय, चाहे वह नाराज़गी का प्रतीक हो या मौन विरोध, एक बात स्पष्ट करता है: सुप्रीम कोर्ट में पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग अब पहले से कहीं अधिक प्रबल हो चुकी है।