तमिलनाडु:
तमिलनाडु से जातिगत भेदभाव के खिलाफ एक सख्त और ऐतिहासिक फैसला सामने आया है। सरकारी स्कूल की मिड-डे मील योजना में कार्यरत दलित महिला रसोईया को उसकी जाति के कारण खाना बनाने से रोकने, अपमानित करने और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के मामले में विशेष अदालत ने दोषियों को दोषसिद्ध करते हुए जेल की सजा सुनाई है। यह फैसला न केवल पीड़िता के लिए न्याय है, बल्कि समाज के लिए भी एक कड़ा संदेश है।
रसोई से बेदखली और जातिगत अपमान
मामला तिरुपुर जिले के एक सरकारी स्कूल से जुड़ा है, जहां नियुक्त दलित महिला रसोईया को कुछ प्रभावशाली अभिभावकों और ग्रामीणों ने उसकी जाति का हवाला देकर बच्चों के लिए भोजन बनाने से रोक दिया। रसोई में प्रवेश पर आपत्ति जताई गई, जातिसूचक शब्दों का प्रयोग हुआ और लगातार सामाजिक दबाव बनाकर उसे अपमानित किया गया।
उन्मूलन अस्पृश्यता आंदोलन ने उठाई आवाज
जब यह मामला सामने आया तो तमिलनाडु उन्मूलन अस्पृश्यता आंदोलन (Untouchability Eradication Front – UEF) के सदस्यों ने खुलकर पीड़िता के समर्थन में आवाज उठाई। संगठन के कार्यकर्ताओं ने इसे घोर सामाजिक अपराध बताते हुए विरोध प्रदर्शन किया और प्रशासन से कड़ी कार्रवाई की मांग की। आंदोलन की सक्रिय भूमिका के बाद ही मामला राज्य स्तर पर चर्चा में आया।
संरक्षण के बजाय स्थानांतरण की नीति
सबसे गंभीर पहलू यह रहा कि पीड़िता को सुरक्षा और सम्मान देने के बजाय प्रशासन ने उसे ही कई बार अलग-अलग स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया। स्थानीय दबाव को शांत करने के लिए किए गए ये तबादले महिला के लिए मानसिक प्रताड़ना का कारण बने और उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची।
हार नहीं मानी, न्याय की लड़ाई लड़ी
लगातार अपमान और तबादलों के बावजूद दलित महिला रसोईया ने हार नहीं मानी। उन्मूलन अस्पृश्यता आंदोलन के सहयोग से उसने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम सहित अन्य धाराओं में मामला दर्ज कर जांच शुरू की।
लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट का फैसला
मामले में वर्षों तक चली कानूनी प्रक्रिया के बाद विशेष अदालत ने गवाहों और साक्ष्यों के आधार पर माना कि महिला के साथ जातिगत आधार पर गंभीर अत्याचार किया गया। कोर्ट ने दोषियों को दोषसिद्ध करते हुए जेल की सजा सुनाई।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
अदालत ने कहा कि किसी महिला को उसकी जाति के कारण भोजन बनाने जैसे मानवीय कार्य से रोकना संविधान में प्रदत्त समानता, गरिमा और मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है। मानसिक प्रताड़ना और सामाजिक बहिष्कार भी कानूनन अपराध हैं।
समाज के लिए स्पष्ट चेतावनी
कोर्ट के इस फैसले ने साफ कर दिया है कि जाति के नाम पर भेदभाव करने वालों को अब कानून बख्शने वाला नहीं है। यह निर्णय भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए एक मजबूत नजीर बनेगा।
“रसोई में जाति नहीं, इंसान होता है — और जो भेदभाव करेगा, उसे कानून की सख्त सजा मिलेगी।”
