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शिवराज पाटिल: संसदीय गरिमा से सुरक्षा विवाद तक का अनोखा सफर, 90 वर्ष की उम्र में अलविदा…

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एक्सक्लूसिव रिपोर्ट, आज24.in | 12 दिसंबर 2025, नई दिल्ली

भारतीय राजनीति के एक युग का अंतिम अध्याय लिखा गया। पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री और लोकसभा के लंबे समय तक स्पीकर रहे शिवराज विष्णु पाटिल का आज सुबह महाराष्ट्र के लातूर में निधन हो गया। 90 वर्ष की आयु में ‘देवघर’ निवास पर उम्रजनित अस्वस्थता के कारण उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका पार्थिव शरीर कल (13 दिसंबर) को लातूर में ही अंतिम संस्कार के लिए होगा, जहां देशभर से नेता श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचेंगे।

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पाटिल का जन्म 12 अक्टूबर 1935 को लातूर के चाकुर गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। विज्ञान और कानून की डिग्री लेने के बाद उन्होंने 1960 के दशक में स्थानीय राजनीति से कदम रखा। 1967-69 में लातूर नगरपालिका के प्रमुख बनकर उन्होंने जनसेवा की नींव रखी, जो बाद में महाराष्ट्र विधानसभा तक पहुंची। 1972 और 1978 में लातूर सिटी से विधायक चुने गए, जहां उन्होंने सिंचाई, कानून-व्यवस्था और प्रोटोकॉल जैसे विभागों में उप-मंत्री के रूप में काम किया। 1978-79 में महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर बनकर उन्होंने राज्य स्तर पर संसदीय परंपराओं को मजबूत किया।

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केंद्रीय पटल पर 1980 में लातूर लोकसभा सीट से सांसद बनने के साथ उनका राष्ट्रीय सफर चमका। सात लगातार चुनाव जीतकर (1980-1999) उन्होंने कांग्रेस की मजबूत जड़ें जमाईं। इंदिरा गांधी के दौर में रक्षा राज्य मंत्री (1980-82) से शुरू होकर वाणिज्य, विज्ञान-प्रौद्योगिकी और परमाणु ऊर्जा जैसे मंत्रालय संभाले। 1983-84 में अंतरिक्ष और महासागरीय विकास के मंत्री के रूप में उन्होंने वैज्ञानिक अनुसंधान को नई दिशा दी। राजीव गांधी सरकार में कार्मिक, नागरिक उड्डयन और पर्यटन के प्रभार ने उन्हें बहुआयामी नेता बनाया।

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1991-96 का दौर उनके करियर का स्वर्णिम अध्याय था, जब वे लोकसभा के 10वें स्पीकर बने। इस दौरान उन्होंने संसद को डिजिटल रूप दिया—प्रश्नकाल का लाइव प्रसारण, सदस्यों के लिए कंप्यूटरीकृत सूचना प्रणाली और संसद पुस्तकालय का विस्तार जैसे कदम उठाए। 1999 में पार्टी घोषणा-पत्र समिति के चेयरमैन के रूप में भी सक्रिय रहे। 2004 में यूपीए सरकार में गृह मंत्री बनना उनके करियर का चरम था, लेकिन 26/11 मुंबई हमलों की सुरक्षा चूक ने विवाद खड़ा किया। नैतिक आधार पर इस्तीफा देकर उन्होंने जिम्मेदारी निभाई, हालांकि यह घटना उनके नाम से जुड़ गई।

2004 में लोकसभा हार के बाद राज्यसभा सदस्य बने (2004-10), और 2010-15 तक पंजाब के राज्यपाल तथा चंडीगढ़ के प्रशासक रहे। सेवानिवृत्ति के बाद लातूर लौटकर उन्होंने किताबें लिखीं और युवा नेताओं को मार्गदर्शन दिया। नंदीग्राम घटना (2007) और राष्ट्रपति चुनाव जैसे विवादों के बावजूद, उनकी छवि गरिमामयी रही।

आज लोकसभा में विशेष सत्र में स्पीकर ओम बिरला ने उन्हें ‘संसद का सितारा’ कहा, जबकि कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे ने ‘अपूरणीय क्षति’ का दर्द बयां किया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शोक संदेश में उनकी ‘निष्ठा और समर्पण’ की सराहना की। महाराष्ट्र में शोक सभाओं का दौर चल रहा है, और सोशल मीडिया पर उनकी पुरानी तस्वीरें वायरल हो रही हैं।

पाटिल जी का सफर सादगी, सेवा और संघर्ष का प्रतीक था। उनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगी।

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