रायपुर, 30 दिसंबर 2025। जाते-जाते वर्ष 2025 ने हिंदी साहित्य जगत को एक झटका और दे दिया। विगत चार दशकों से हिंदी कविता और आलोचना के क्षेत्र में प्रगतिशील-जनवादी दृष्टिकोण के साथअपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने वाले नासिर अहमद सिकंदर का आज सुबह बजे हृदयाघात से निधन हो गया। वे विगत कुछ वर्षों से शारीरिक व्याधियों से जूझ रहे थे।
उनका अंतिम संस्कार कल शाम को भिलाई में किया गया। उत्तरप्रदेश से संबंध रखने वाले नासिर भिलाई स्टील प्लांट से सेवा निवृत होने के बाद भिलाई में ही बस गए थे। कई साहित्यिक मित्रों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराकर उन्हें अंतिम विदाई दी।
नासिर अहमद छत्तीसगढ़ के नवोदित कवियों को लेखन-प्रकाशन का संबल देने के लिए जाने जायेंगे। विगत दो वर्षों से वे यह महत्वपूर्ण कार्य कर रहे थे। दैनिक नवभारत में छत्तीसगढ़ के युवा कवियों की कविताओं पर आधारित स्तंभ ‘अभी बिल्कुल अभी’ के उन्होंने संपादन के लिए वे काफी चर्चित हुए थे। इसके अलावा उन्होंने देशबंधु सहित कई दैनिक समाचार पत्रों के साहित्यिक पृष्ठों का भी संपादन किया था और भास्कर राय चौधरी तथा रजत कृष्ण जैसी छत्तीसगढ़ की बेहतरीन काव्य-प्रतिभाओं को सामने लाया था। साक्षात्कारों पर केन्द्रित श्रृंखला ‘आमने सामने’ के संपादन के लिए भी वे काफी चर्चित हुए थे। हाल ही में कवि संतोष चतुर्वेदी के ब्लाग ‘पहली बार” में युवा कवियों की कविताओं पर उनकी नियमित टिप्पणी भी उल्लेखनीय है।
साहित्य के क्षेत्र में नासिर अहमद सिकंदर का योगदान जो कुछ भी घट रहा है दुनिया में, खोलती है खिड़की, इस वक्त मेरा कहा, भूलवश और जानबूझकर, अच्छा आदमी होता है अच्छा, चयनित कविताएं (चयन एवं संपादन सुधीर सक्सेना) आदि कविता संग्रहों, बचपन का बाइस्कोप, प्रगतिशीलता की पैरवी आदि आलोचनात्मक पुस्तकों और कुछ साक्षात्कार (प्रसिद्ध लेखकों से लिए गये साक्षात्कार) आदि के जरिए याद किया जाएगा। उन्होंने साहित्यिक पत्रिका ‘समकालीन हस्ताक्षर’ के
केदारनाथ अग्रवाल तथा चन्द्रकांत देवताले पर केन्द्रित दो अंकों का संपादन भी किया था। इन अंकों के कारण पूरे देश के साहित्य जगत का ध्यान उनके संपादकीय कौशल पर गया।
अपनी जनवादी रुझान की रचनाओं के साथ नासिर अहमद न केवल उत्कृष्ट साहित्यकार थे, बल्कि कुशल संगठनकर्ता भी थे। छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद से ही वे जनवादी लेखक संघ के केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और छत्तीसगढ़ जलेसं के महासचिव थे। उनके स्वास्थ्य में गिरावट के बाद उनके ही अनुरोध पर पिछले सम्मेलन में उन्हें महासचिव पद से निवृत्त कर उपाध्यक्ष बनाया गया था।
जनवादी लेखक संघ ने उन्हें अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना का इजहार किया है। *अपने बयान में जलेसं के छत्तीसगढ़ सचिव पूर्णचंद्र रथ ने कहा है कि देश में सांप्रदायिक मनोभाव के विकास से वे काफी व्यथित थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और सांप्रदायिकता के खिलाफ लेखकों को एकजुट करने के काम में लगे रहे। साहित्य में प्रचलित ‘कला, कला के लिए’ सिद्धांत का विरोध करते हुए उन्होंने कला को जीवन और राजनीति से जोड़ने की पहलकदमी की। इस प्रकार, उनका पूरा साहित्य कलावाद की उलटबांसियों और सांप्रदायिकता के खिलाफ युद्ध का घोषणापत्र है, जो साहित्य को प्रगतिशील-जनवादी राजनीति और मानवीय सरोकारों के साथ जोड़ने का काम करता है। उनके देहावसान पूरे संगठन और साहित्यिक सरकारों के लिए अपूरणीय क्षति है।
पूर्णचंद्र रथ
सचिव, जनवादी लेखक संघ, छत्तीसगढ़
(मो) 91312-10063

