नई दिल्ली: कच्चा तेल (क्रूड) भारत की सबसे कमजोर कड़ी है। अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत बड़े पैमाने पर कच्चे तेल का आयात करता है। यह निर्भरता उसके लिए कई चुनौतियां पैदा करती है। हालांकि, यह ‘सबसे बड़ा कांटा’ दूर होता दिख रहा है। आने वाले कुछ समय में क्रूड की कीमतों पर भारी दबाव देखने को मिल सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतों में गिरावट देखने को मिली हैं। हाल के कुछ समय में भारत का सबसे बड़ा तेल आयातक देश रूस रहा है। सऊदी अरब, इराक, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका से भी भारत तेल आयात करता है। उसने अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए कभी समझौता नहीं किया। अब जैसी स्थिति बन रही है, उसमें रूस से लेकर अमेरिका तक उसे थामने के लिए बेकरार रहेंगे।भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल खपत करने वाला देश है। लेकिन, उसके पास घरेलू उत्पादन बहुत कम है। लिहाजा, वह अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए बड़ी मात्रा में कच्चा तेल आयात करता है। इस मद में उसका सबसे ज्यादा खर्च होता है।
डोनाल्ड ट्रंप ने आयात पर, खासकर चीन से आने वाले सामानों पर ऊंचे शुल्क लगाने की योजना बनाई है। अगर ऐसा होता है तो इसका असर वैश्विक तेल मांग पर पड़ सकता है। कारण है कि चीन दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक है। इसके अलावा, ट्रंप ने अमेरिकी तेल उत्पादन और निर्यात को बढ़ाने पर जोर दिया है। इसके लिए उन्होंने ‘ड्रिल, बेबी, ड्रिल’ का नारा दिया था। इससे ग्लोबल ऑयल सप्लाई में बढ़ोतरी हो सकती है और बड़े तेल उत्पादक देशों को बाजार हिस्सेदारी के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ सकती है। इससे कीमतों पर दबाव पड़ सकता है।