मनेंद्रगढ़। कभी यही रजिस्ट्री हमारे रिश्तों, खबरों और सरकारी कामों की सबसे बड़ी गवाह हुआ करती थी। वही सात समुन्द्र पार मीलों का सफ़र तय कर, डाकिया घंटी बजाता और दरवाजे में दस्तक के साथ लाता था- विश्वास और भरोसे की मुहर। आज आधुनिक तकनीक ने डाकघर की उस पुरानी रजिस्ट्री को पीछे छोड़ दिया है। जैसे ई-मेल, व्हाट्सऐप और ऑनलाइन सेवाओं ने उसके महत्व को कम कर दिया। फिर भी 50 साल पुरानी वह रजिस्ट्री केवल कागज़ का टुकड़ा नहीं, बल्कि हमारी भावनाओं और इतिहास की याद है। हमारी चिट्ठी पत्री पहुँचाने का सबसे किफायती और भरोसेमंद साधन है। लेकिन इसकी एक सर्विस के माध्यम से लीगल नोटिस और महत्वपूर्ण सरकारी फरमान के लिए इससे भरोसे की कोई सर्विस नहीं है।
मगर आगे से ऐसा नहीं होगा। भारतीय डाक विभाग ने अब अपनी 50 साल से भी अधिक पुरानी प्रतिष्ठित सेवा को समाप्त करने की घोषणा कर दी है। एक सितंबर से नागरिक अपने पार्सल को विश्वसनीय और सस्ती रजिस्ट्री के माध्यम से नहीं भेज पाएंगे। वही एमसीबी जिला के निवासी अधिवक्ता संजय गुप्ता ने बताया कि भारतीय डाक विभाग ने इस सेवा को अपनी महंगी स्पीड पोस्ट सेवा में विलय करने का आदेश जारी कर दिया है तथा अब हर पार्सल या कागज पत्री पर मोटा-माटी दोगुना ‘लगान’ देना होगा। उदाहरण के लिए, अब तक जो 20 ग्राम का पार्सल लगभग 26-27 रुपये में रजिस्ट्री हो जाता था, उसे स्पीड पोस्ट से भेजने के लिए 41 रुपये चुकाने होंगे, जो लगभग 75 फीसदी ज्यादा हुआ। जिसकी वजह से आम जन को उक्त सेवा के लिए अतिरिक्त राशि चुकाने पर सेवा प्राप्त होगी।
तो आइए कहें –
“धन्यवाद भारतीय डाक, धन्यवाद रजिस्ट्री… अब वक्त है आपको बाय-बाय कहने का।”
यह लेख/विचार अधिवक्ता संजय गुप्ता जी का है, थोड़ा संशोधन कर प्रस्तुत किया गया है।