डीजे के शोर के विक्टिम्स के लिए सिर्फ़ घडियाली आंसू !! हाई कोर्ट और शासन से अब तक कोई राहत और मुआवजा नहीं।

Admin
By Admin

नौ साल में कई जनहित और अवमानना याचिकाओं के बावजूद छत्तीसगढ में डीजे के शोर के विक्टिम्स को कोई राहत और मुआवजा नहीं मिला।

- Advertisement -

करोडपति एक्टिविस्ट्स के जोश और जबरदस्त मीडिया कवरेज से भी शोर के विक्टिम्स को राहत और मुआवजा का मुद्दा उठ नहीं सका। संविधान-प्रशिक्षक बी.के. मनीष ने ध्यान दिलाया है कि पुलिस की गैर-कानूनी जुर्माना-रिश्वत वसूली को बढावा देने के बजाए राहत और मुआवजे पर पर जोर देना ज्यादा जरुरी है।

- Advertisement -

हाई कोर्ट में दाखिल शपथ पत्रों के अनुसार लगभग दो करोड रुपए का जुर्माना और डीजे असोशिएसन के मुताबिक लगभग पांच करोड की रिश्वत वसूली हो चुकी है। छग पुलिस ने असंवैधानिक हो चुके कोलाहल नियंत्रण अधिनियम और ट्रैफ़िक सुरक्षा के खतरे से बाहर मोटर वाहन अधिनियम के तहत डीजे संचालकों के खिलाफ़ जुर्माने के प्रकरण बनाए हैं।

केंद्रीय प्रदुषण नियंत्रण मंडल के 2021 में जारी शोर मुआवजा दर-सूची के मुताबिक डीजे संचालकों से वसूली के लिए एक भी कार्रवाई नहीं की गई है। यही वजह है कि छग में अब तक जुर्माने और अवैध वसूली की इस भारी रकम का एक रुपया भी पर्यावरण संरक्षण कोष में जमा नहीं किया गया है।

छत्तीसगढ के दूर-दराज इलाकों में रहने वाले डीजे के शोर के विक्टिम्स को राहत और मुआवजे के लिए एनजीटी, भोपाल में आवेदन की प्रक्रिया का न तो पता है न ही इसके लिए संसाधन हैं। दो दर्जन सुनवाई-पेशियों में भी हाई कोर्ट को विधिक सेवा प्राधिकरण से डीजे के शोर के विक्टिम्स को जरुरी सहायता देना नहीं सूझा है। राज्य-जिला प्रशासन भी पर्यावरण संरक्षण कोष या किसी अन्य स्त्रोत से डीजे के शोर के विक्टिम्स को राहत और मुआवजे की राशि भुगतान कर सकता है।

उसके बाद इस खर्च की वसूली के लिए कार्यक्रम आयोजक और डीजे संचालक के खिलाफ़ एनजीटी एक्ट की धाराओं 15 और 17 के अधीण कार्रवाई की जानी चाहिए।आज की तारीख में भारत में सीधे तौर पर डीजे पर नियंत्रण के लिए कोई प्रभावी कानून मौजूद ही नहीं है। ध्वनि प्रदूषण नियम 2000 में ध्वनि पैदा करने वाले (एंप्लीफ़ायर समेत) कई स्त्रोतों का जिक्र है, डीजे का नहीं।

केंद्रीय विधि, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत ध्वनि प्रदूषण नियम 2000 के प्रभाव में आते ही उस 14 फ़रवरी से राज्य विधि, छग. कोलाहल नियंत्रण अधिनियम 1985 शून्य हो चुका है।

छग. विधि सचिव ने लिखित राय दी है कि सिर्फ़ टकराहट की सीमा तक ही राज्य का कानून शून्य होता है जबकि संविधान के अनुच्छेद 253 के मुताबिक राज्य का उस विषय पर कानून बनाने का क्षेत्राधिकार ही खत्म हो जाता है जिस पर भारत कोई अंतर्राष्ट्रीय संधि कर ले (संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण संधि स्टॉकहोम, 1972)।

राज्य में आज तक ध्वनि प्रदूषण नियम 2000 अंतर्गत औद्योगिक, व्यावसायिक, रहवासी और शांत क्षेत्रों के वर्गीकरण की पर्यावरण सचिव की गजट अधिसूचना जारी नहीं हो पाई है (नियम 3.2 एवं 3.5)।

न ही केंद्र/राज्य शासन ने प्रदूषण नियंत्रण मंडल के सिवा किसी अन्य पदाधिकारी जैसे डीएम-एसपी को प्राधिकारी नियुक्त किया है (नियम 2-ग)। इसीलिए ध्वनि प्रदूषण करने वालों पर नियमों 5, 5क, 6, 7 के अधीन उचित कार्रवाई नहीं हो पा रही है।

देश भर में राज्य-स्थानीय प्रशासन प्रदूषण विधि की बात करते हुए भी सारी कार्रवाई न्यूसेंस- कंटक के कानूनों के अधीन करता है। ध्वनि के मामले में इस सदी में किसी भी डीएम ने सीआरपीसी/बीएनएसएस के तहत और किसी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने आईपीसी/बीएनएस के तहत कोई जिरह नहीं होने दी है। केंद्रीय नियम के अधीन स्थानीय प्रशासन द्वारा जबरिया डीजे उपकरण जब्ती, जुर्माना वसूली और फ़िरौती-रिश्वत वसूली नहीं की जा सकती।

नियमानुसार किसी भी नियंत्रक कार्रवाई के लिए एक-एक प्रकरण में नोटिस जारी कर जिरह सुननी पडेगी और सजा-जुर्माने के लिए प्राधिकारी को एनजीटी, भोपाल, में आधिकारिक शिकायत करनी होगी।

Share This Article