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CG NEWS : नमस्कार मैं मुकेश चंद्राकर हूं…ये मेरी कहानी है ,CM बनने का सपना था

Aaj 24
By Aaj 24

बीजापुर। के पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने महज 33 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया, लेकिन ये 33 साल की जिंदगी में उसने बड़ा नाम कर लिया। इसमें से एक बड़ी अचीवमेंट थी नक्सलियों के चंगुल से CRPF जवान और सब इंजीनियर को छुड़ाना। बचपन में पिता का साया उठा, सलवा जुडूम के समय परिवार को गांव छोड़ना पड़ा। एक नए वाटरफॉल की खोज कर अपने रिपोर्टिंग की शुरुआत की और भ्रष्टाचार उजागर करने की रिपोर्ट उसकी आखिरी खबर साबित हुई। शायद उसकी हत्या का कारण भी यही खबर बनी, हालांकि ये जांच का विषय है।

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नमस्कार मैं मुकेश चंद्राकर हूं… ये लाइन कहकर मुकेश अपनी खबर की शुरुआत करते थे। ऐसे में आज उनकी ही जुबानी कुछ रोचक कहानी बताने की कोशिश कर रहा है- मेरा जन्म 4 जुलाई 1991 को बीजापुर के बासागुड़ा इलाके में हुआ। जन्म के कुछ दिन बाद ही पिता का साया सिर से उठ गया। मेरी मां आंगनबाड़ी कार्यकर्ता थीं और बड़े भाई का नाम युकेश है। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। मां ने दोनों को बड़ी मुश्किल से पाला था।

बचपन में मेरा सपना CM बनने का था। तंगी के चलते भाई के साथ जंगल से वनपोज इमली, महुआ और टोरा भी बीन चुका हूं। इसे बाजार में बेचकर थोड़े बहुत पैसे मिलते थे, जिससे अपने लिए किताब खरीदते थे। बचपन में संघर्ष चल ही रहा था कि एक दिन ऐसा आया कि, अपना खुद का घर तक छोड़ना पड़ा। साल 2005-06 में बस्तर में नक्सलियों की क्रूरता बढ़ गई थी। इसी समय सलवा जुडूम की भी शुरुआत हुई।

माओवादियों ने उस इलाके के सैकड़ों घरों को खाली करवा दिया था। कई लोग बेघर हुए थे। उनमें से एक मेरा भी घर और परिवार था। इसके बाद बीजापुर पहुंचा और सरकार के राहत शिविर कैंप में कुछ सालों तक परिवार के साथ रहा। संघर्ष चल ही रहा था कि, दुखों का बड़ा पहाड़ टूटा, मेरी मां की बीमारी के चलते मौत हो गई। हम दोनों भाई अनाथ हो गए। जैसे-तैसे संभले और बड़े हुए। जब टीचर मुझसे पूछते थे कि, मुकेश बड़ा होकर क्या बनोगे? तो मैं कहता था कि CM बनूंगा।

हालांकि हालत ने पहले तो मेकैनिक बनाया। खुद का घर नहीं था, किराए के मकान में रहकर जिंदगी चला रहा था। खर्चों को पूरा करने के लिए दोपहिया वाहनों की मरम्मत करने का काम किया। मेरे बड़े भाई युकेश को किताबें पढ़ने का बहुत शौक है। उसने पत्रकारिता को चुना है। मैं बस्तर के लोगों का दर्द, उनकी पीड़ा, समस्याओं को दूर करने के लिए उनकी आवाज बनना चाहता था। पत्रकारिता के लिए बड़े भाई से प्रेरणा मिली। भाई युकेश ने मैंने कैमरा चलाना सिखा, लिखना और बोलना सिखा।

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