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2026 : हिंदू राष्ट्र की धमक! (आलेख : राजेंद्र शर्मा)

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आरएसएस के सौ साल पूरे होने के मौके पर देश के अलग-अलग हिस्सों में आयोजित की जा रही व्याख्यान श्रृंखला में उसके सर-संघचालक, मोहन भागवत 2025 के आखिरी पखवाड़े में कोलकाता में बोल रहे थे। यहां बोलते हुए भागवत ने कुछ ऐसा कहा, जो पहली नजर में बहुतों को आरएसएस की जानी-पहचानी लफ्फाजी का दोहराव लग सकता है, लेकिन थोड़ा गौर से देखते ही उसकी खतरनाक अर्थ-ध्वनियां सुनाई देने लगती हैं। प्रकटत: तो भागवत आरएसएस का जाना-पहचाना दावा ही दुहरा रहे थे कि भारत एक हिंदू राष्ट्र था, है और रहेगा! “जब तक इस देश में एक व्यक्ति भी भारतीय पूर्वजों की गौरवाशाली विरासत में विश्वास करता है, तब तक भारत एक हिंदू राष्ट्र है”, आदि। लेकिन, इस व्याख्यान में आरएसएस के मुखिया संभवत: पहली बार, भारत के हिंदू राष्ट्र होने के अपने दावे को, उस भारतीय संविधान के ही सामने खड़ा कर देते हैं, जो स्पष्ट रूप से भारत के एक धर्मनिरपेक्ष, बहुलतावादी राष्ट्र होने की संकल्पना पर आधारित है।

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बेशक, भागवत हिंदू राष्ट्र के अपने दावे को, उपनिवेशवाद विरोधी राष्ट्रवादी संघर्ष की कोख से निकले और आंबेडकर की कलम के माध्यम से, सामाजिक बराबरी और भाईचारे की रौशनाई से लिखे गए, संविधान के साथ सीधे टकराने से बचाकर निकालने की कोशिश करने की चतुराई भी बरतते हैं और प्रकटत: यह दावा करने पर खुद को रोक भी लेते हैं कि इसके लिए संविधान की मंजूरी की जरूरत नहीं है कि “हिंदुस्तान एक हिंदू राष्ट्र है”। फिर भी वह संविधान की मंजूरी होने या न होने से फर्क ही नहीं पड़ने की इस झूठी मुद्रा पर ही नहीं रुके रहते हैं। वह खुलेआम राजनीति के मैदान में उतरते हुए, इसकी अनिष्टकर संभावना की ओर भी इशारा करते हैं कि ”अगर संसद कभी संविधान में संशोधन कर वह शब्द जोड़ने का फैसला करती है…”; वह शब्द यानी हिंदू राष्ट्र। यह दूसरी बात है कि इस संभावना के जिक्र के साथ भी वह यह जोड़ना नहीं भूलते हैं कि संसद अगर ऐसा ”न भी करे, तो हमें उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। हमें उस शब्द की परवाह नहीं है, क्योंकि हम हिंदू हैं और हमारा राष्ट्र हिंदू राष्ट्र है। यही सच्चाई है।”

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सीधी-सरल भाषा में इस पूरी शाब्दिक कसरत का अर्थ यही है कि मोहन भागवत का संगठन, यह जानते-समझते हुए भी कि यह भारत के वर्तमान संविधान के खिलाफ है, भारत को हिंदू राष्ट्र मानता है और सबसे मनवाने के लिए यानी हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए, काम कर रहा है और करता रहेगा। इसके लिए वह संविधान के ही बदले जाने के भरोसे बैठा तो नहीं रहेगा। हां! संविधान भी अगर उसकी भाषा बोलने लगे तब तो कहना ही क्या? मोदी-शाह की भाजपा के लिए संघ की सौवीं सालगिरह पर भागवत ने अगला टास्क तय कर दिया है — संविधान बदलकर कर उसमें वह शब्द (हिंदू राष्ट्र) जुड़वाना!

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और साल के उसी अंतिम पखवाड़े में मोदी-शाह की हुकूमत क्या कर रही थी? देश की आबादी का कुल 2.3 फीसदी हिस्सा बनाने वाले ईसाइयों के सबसे बड़े धार्मिक त्यौहार पर, जो वैसे भी सबसे प्रेम तथा सौहार्द्र व मेल-जोल के संदेश के लिए ही जाना जाता रहा है, मोदी-शाह की भाजपा समेत, समूचे आरएसएस विचार परिवार के सरासर अकारण हमलों को, सामान्य बनाने की कोशिश की जा रही थी। भागवत के उपदेश की तरह, इस मामले में मोदी-शाह की हुकूमत दुहरी चाल चल रही थी। एक ओर संघ विचार परिवार के हिस्से के तौर पर, सिर्फ बजरंग दल, विहिप आदि जैसे कथित रूप से हाशिए के संगठन ही नहीं, केंद्र में मोदीशाही से लेकर, उत्तर प्रदेश में योगीशाही तक, धर्मनिरपेक्ष संविधान के अंतर्गत चुनी गयी भाजपायी सरकारें तक, एक त्यौहार के रूप में क्रिसमस को ही नकारने में लगी हुई थीं। केंद्र ने 25 दिसंबर को क्रिसमस की जगह तथाकथित सुशासन दिवस मनाने से जो शुरूआत की थी, उसे इस बार उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखंड जैसे भाजपा-शासित राज्यों में क्रिसमस की छुट्टी ही रद्द करने तक पहुंचा दिया। वहां इस मौके पर व्यापक स्तर पर अटलबिहारी वाजपेयी का जन्म दिन मनाया गया, जिसके लिए बच्चों को खासतौर पर स्कूलों में बुलाया गया। इस मौके पर स्वयं प्रधानमंत्री ने लखनऊ में एक विशाल कार्यक्रम में 230 करोड़ रु. की लागत से बने ”राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल” और हार्मनी पार्क का उदघाटन किया।

अपने ”हिंदू राज” की, वाजपेयी के जन्म दिन से क्रिसमस को प्रतिस्थापित करने की इस तरह की कोशिशों से प्रेरणा पाकर, भाजपा समेत संघ परिवार के विभिन्न संगठनों ने देश के विभिन्न हिस्सों में, जाहिर है कि ज्यादातर भाजपा-शासित राज्यों में, क्रिसमस के आयोजनों को अभूतपूर्व हमलों और तोड़-फोड़ का निशाना बनाया। असम, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, दिल्ली, ओडिशा, राजस्थान, उत्तराखंड तथा कुछ अन्य राज्यों में, क्रिसमस की पूर्व-संध्या से लेकर क्रिसमस के दिन तक, हमले की ऐसी घटनाएं घट ही रही थीं। शापिंग मॉल, बाजार आदि, सार्वजनिक स्थलों पर क्रिसमस की सजावट पर तोड़-फोड़ के जरिए विशेष रूप से यह व्यापक संदेश देने की कोशिश की गयी कि हिंदू राज में, गैर-हिंदू अपने धार्मिक त्यौहार मनाते, रीति-रिवाजों का पालन करते, कर्म-कांड करते, सार्वजनिक रूप से दिखाई नहीं देने चाहिए। अल्पसंख्यक हों भी तो अदृश्य होकर रहें, दिखाई सिर्फ हिंदू देने चाहिए। आरएसएस के सबसे महत्वपूर्ण सिद्घांतकार माने जाने वाले, गोलवालकर ने हिंदू राष्ट्र में रहने वाले अल्पसंख्यकों के लिए, ठीक यही ”मर्यादा” तय की है।

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बेशक, क्रिसमस पर हमले की ऐसी घटनाएं पहली बार नहीं हो रही थीं। पहले कभी-कभार, स्थानीय कारणों से होने वाली इस तरह की घटनाएं, शासन से एक प्रकार से खुली छूटी, बल्कि आशीर्वाद हासिल होने के कारण, मोदीशाही में लगातार और तेजी से बढ़ती गयी हैं। इस क्रिसमस पर इन घटनाओं में करीब छ: गुनी बढ़ोतरी होने की खबर है। संघ परिवार की दोहरी चाल के अनुरूप, खुद प्रधानमंंत्री, उत्तर प्रदेश में औपचारिक रूप से क्रिसमस की जगह वाजपेयी के जन्म दिन को बैठाने के कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए रवाना होने से पहले, राजधानी दिल्ली में बड़े भक्तिभाव से एक गिरजे में जाकर क्रिसमस की विशेष प्रार्थना में शामिल हुए। उन्होंने अपने क्रिसमस के इस आयोजन में शामिल होने का वीडियो भी सोशल मीडिया पर डाला और प्रेम व सद्भाव को क्रिसमस का मूल संदेश बताते हुए, सार्वजनिक रूप से क्रिसमस की शुभकामनाएं भी दीं। दूसरी ओर, अपने संघ परिवारियों के हमलों से क्रिसमस और ईसाइयों को बचाने के लिए खुद उन्होंने और उनके राज ने, कुछ भी नहीं किया। यहां तक कि न तो प्रधानमंत्री को इसकी अपील तक करना गवारा हुआ कि ऐसे हमले नहीं होने चाहिए और न उनके नंबर दो, गृहमंत्री को ऐसी गुंडागर्दी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की धमकी तक देना गवारा हुआ। हैरानी की बात नहीं है कि इन हमलों के लिए, भाजपा-शासित राज्य में पुलिस ने शायद ही किसी पर कोई कार्रवाई की है! जब लक्ष्य हिंदू राज में अल्पसंख्यकों को ही अदृश्य करना है, उन पर हमलों को कैसे दर्ज होने दिया जा सकता है। गोलवालकर की कल्पना के हिंदू राष्ट्र की स्थापना का अभ्यास जारी है।

और जैसे हिंदू राष्ट्र के लाए जाने के इसी अभ्यास के आर्थिक-सामाजिक घटक के रूप में, दिसंबर के उसी आखिरी पखवाड़े में, ग्रामीण गरीबों के लिए न्यूनतम शारीरिक मजदूरी की गारंटी करने वाले मनरेगा कानून को खत्म करने और उसकी जगह पर कथित वीबी-जी राम जी योजना को बैठाए जाने पर, संसद से और फिर राष्ट्रपति से ताबड़तोड़ मोहर लगवायी गयी। कई अर्थों में यह संसदीय बहुमत की तानाशाही के सहारे, किसानों के हितों पर चोट करने वाले और मौजूदा हिंदुत्ववादी निजाम को सहारा देने वालेे कारपोरेटों के स्वार्थ साधने वाले, तीन कृषि कानूनों के मामले में जो किया गया था, उसी की पुनरावृत्ति है। इस बार प्रत्यक्ष रूप से स्वार्थ साधे जा रहे हैं, बड़े भूस्वामियों के, जो ग्रामीण क्षेत्र में मौजूदा निजाम के समर्थन की रीढ़ हैं और जिनके लिए यह बदलाव, सस्ते मजदूर मुहैया कराने का साधन बनेगा। इससे पहले, श्रम कानूनों को एक प्रकार से ध्वस्त ही करने वाली चार श्रम संहिताओं को अधिसूचित करने के जरिए, कारपोरेटों के स्वार्थ साधने का रास्ता खोला ही जा चुका था। प्रधानमंत्री खुद इसी को नयी पीढ़ी के तथाकथित ”सुधारों की एक्सप्रेस” बताकर, खुद अपनी पीठ ठोक रहे हैं!

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इस तरह, 2025 के आखिर तक, न सिर्फ हिंदू राज के अमल को आगे बढ़ाने का रास्ता बनाया जा चुका है,ए बल्कि उसकी सेनाओं को रसद-पानी मुहैया कराते रहने के लिए, बड़े धनपतियों की तिजोरियों तक पहुंच का भी पुख्ता इंतजाम किया जा चुका है। रही-सही कसर, चुनाव आयोग से लेकर, उपरली अदालतों तक, उन सभी संस्थाओं पर मौजूदा निजाम के कब्जे ने पूरी कर दी है, जिन पर देश के निजाम का संविधान और कानून के हिसाब से चलना सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी थी। जब ईमानदारी से चुनाव होने तक का भरोसा नहीं रहे, तो संविधान भी कब तक ”वह शब्द” जोड़े जाने से बचा रह पाएगा। वैसे भागवत कह ही चुके हैं कि उनका हिंदू राष्ट्र स्थापित करना, संविधान में ”वह शब्द” जोड़े जाने के आसरे नहीं है। प्रधानमंत्री के पद को मुख्य पुजारी के पद में और प्रधानमंत्री कार्यालय परिसर को, सेवा तीर्थ में बदला ही जा चुका है। हिंदू राष्ट्र का निर्माण, चालू आहे!

तो क्या, 2026 के हिस्से में सिर्फ नंगई से सामने आते हिंदू राष्ट्र की चकाचोंध अंधेरा है? हर्गिज नहीं। हरेक नंगई, असलियत को पहचानना आसान भी तो बनाती है। मजदूर, किसान, खेत मजदूर, दलित, पिछड़े, महिलाएं, नौजवान, अल्पसंख्यक ; विशाल कतारें हैं जो दुश्मन की बेहतर पहचान के साथ अपने हक-हुकूक के लिए खड़ी होंगी। जब दरिया झूम के उट्ठेंगे, ‘हिंदू खतरे में हैं’ के पर्दों से न रोके जाएंगे!

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(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक पत्रिका ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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