भरत शर्मा की रिपोर्ट
रतलाम/पिछले कुछ अंकों में आपने पढ़ा की किस तरह आशिक आवारा अपना पूरा दबदबा विभाग पर बनाए हुए हैं विजिलेंस से आए भैया आशिक आवारा का दबदबा इतना ज्यादा है कि उनकी जो बात नहीं मानता उन्हें मूल पद से भी हटना पड़ता है और परेशान भी होना पड़ता है इसका ठीक जीता जागता उदाहरण कुछ दिनों पहले वन वाले लाल को इंचार्ज पद से हटाया गया और यह खामियाज वन वाले लाल को इसलिए भुगतना पड़ा कि वह आशिक आवारा जी की बात नहीं मानते और माने भी क्यों वन वाले लाल एक ऐसे कर्मचारी है जिसने सबसे ज्यादा कमाई करके रेलवे को दी जिसका नाम पुरस्कार में भी आना था पर षडयंत्र पूर्वक हटाया गया और चापलूसों के नाम को जोड़ दिया गया बताते हैं कि वन के लाल इस विभाग के नंबर तीन के अधिकारी के निकटतम है और तीन नंबर के अधिकारी के बारे में बताया जाता है यह हर किसी के लिए सहजता से उपलब्ध रहते हैं पर यही बात आशिक आवारा जी को रास नहीं आ रही पर वो अधिकारी भी क्या करें जब आशिक आवारा जी ने स्वयं का दबदबा बना रखा है।
टिंगू जी के साथ लंबू जी भी अपने आप को कम नहीं समझते
इस विभाग में एक और महाशय है जो कि चापलूसी में नंबर वन है और चापलूसी का आलम ऐसा है कि जिस पद पर लंबू जी बैठे हैं वहां उन्हें आराम ही आराम दे रखा है जबकि इस पद पर बैठने वाला व्यक्ति गाड़ियों में जाता है एक रसीद बुक उसके पास होती है जिसका काम होता है रेलवे को अच्छी इनकम देना पर यहां तो लंबू जी का काम उल्टा है लंबू जी आशिक आवारा जी के पूरे इशारों पर चलते हैं और अपना दबदबा बना कर रखते हैं अब जो लंबू जी के विरोध में चलता है उसे लंबू जी आशिक आवारा जी के कान भर के निपटा देते हैं हालाकी लंबू जी ने अपने इस कार्यकाल में मलाई ही खाई है और खाए भी क्यों नहीं आशिक आवारा जी का सानिध्य टिंगू जी के साथ लंबू जी को भी पूरा प्राप्त है इस विभाग की यह तिगड़ी ने रतलाम के मुख्यालय पर सबके खूब नाक में दम कर रखा है।
दिन के दयाल ने नहीं दिया भाव आशिक आवारा को आया ताव कृपा के शंकर को दिया जबरन का घाव।
अभी 2 दिन पहले ही एक आदेश जारी हुआ यह आदेश देख भारत के सबसे स्वच्छ शहर के काले कोट वाले अचंभित हो गए की एक मेहनत कश व्यक्ति जिससे सब खुश थे चैन की नींद सो रहे थे पर यह सब आशिक आवारा को ना गवार गुजरा क्योंकि दिन के दयाल ने कभी भी इस आशिक आवारा की बात नहीं मानी तो फिर क्या था आशिक आवारा ने विभाग की प्रमुख के कान भरे और कृपा के शंकर को इस विभाग में कुश्ती का दाव दिखाया लेकिन कृपा के शंकर इस जबरन की कृपा से ना खुश है क्योंकि वह साल में आधे समय खेल के संबंध में बाहर होते हैं पर यह जबरन का परेशान करने वाला काम आशिक आवारा जी ने कर तो लिया पर यह कहीं गले की घंटी बनकर उल्टा ना पड़ जाए क्योंकि कृपा के शंकर सीनियर भी इतने ज्यादा है कि उन्हें लंबू जी की जगह बैठा सकते हैं पर लंबू जी तो चापलूसी में बहुत आगे है तो उन्हें आशिक आवारा जी के द्वारा कुछ भी करने का प्रश्न ही नहीं होता साथ में टिंगू जी ने भी आशिक आवारा जी का साथ भरपूर निभा रखा है बस परेशान वही होगा जो आशिक आवारा जी की नहीं सुनेगा।
आखिर इस विभाग की प्रमुख क्यों गांधारी बनकर बैठी है।
इतनी सब खबरों के बाद तथा विभाग में कर्मचारियों में बहुत सुगबुगाहट चल रही है और सब यही कह रहे हैं कि भारत के सबसे स्वच्छ शहर में इतना महत्वपूर्ण काम एक ऐसे व्यक्ति को क्यों दिया जो की ज्यादातर खेल में कोच के तौर पर बाहर रहते हैं और जो कार्य दिया उसका उन्हें ज्ञान भी कम है और सब यही कहते हैं कि पहले कभी इस विभाग में ऐसा नहीं हुआ कि इस तरह किसी भी बाबू ने विभाग प्रमुख को इतना चलाया हो इस विभाग की प्रमुख गांधारी बनकर आशिक आवारा जी पर भरोसा किए जा रही है जबकि उन्हें सोचना चाहिए की आशिक आवारा जी लगातार उनकी आड़ में झाड़ काट रहे हैं प्रमुख जो गांधारी बन कर बैठी है उनको ये सोचना चाहिए की आशिक आवारा दुर्योधन के रूप में पूरे कुल का नाश करवा देगा और ऐसी महाभारत होगी की गांधारी जी को समझ नहीं पड़ेगी जब तक आंखों पर से पट्टी हटेगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी पर अभी तक ऐसा लगता है की गांधारी बन कर प्रमुख जी कंबल ओढ़ कर घी पी रही है।
अगले अंक में आप को बताएंगे किस तरह आशिक आवारा जी में श्रद्धा ना दिखाने पर कर्मचारी का किया बुरा हाल ओर किस अधिकारी के साथ है आशिक आवारा का गठबंधन