जजमेंट को पूरी तरह पढे बगैर भड़काऊ बयान देकर न्यायालय की प्रतिष्ठा धूमिल करने पर आपराधिक अवमानना प्रकरण चलाने की अनुमति देने का निवेदन धारा 15(1) अंतर्गत उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता से किया गया है।
कासगंज जिले के पतियाली थाने के इस प्रकरण में दोनों परिवारों ने एक दूसरे पर सेक्सुअल असॉल्ट की शिकायत की हुई है जो जिला न्यायालय स्तर पर लंबित है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की एकल पीठ ने 17 मार्च के फ़ैसले में किसी भी पक्ष के हितों को बाधित किए बगैर मामला वापस पोक्सो न्यायालय भेज दिया था। हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी आदेश के बावजूद विचारण न्यायालय को परिस्थिति-अनुसार सजा पर अंतिम फ़ैसला सुनाने से पहले तक “आरोप” सुधार लेने का अधिकार अंतर्गत धारा 216 सीआरपीसी हासिल है।
पतियाली थाना प्रभारी या पीडिता समेत मां को चर्चित ‘अटेंप्ट टू रेप’ विवाद में 6 माह की जेल संभव।
17 मार्च के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा एकल पीठ के विवादास्पद फ़ैसले के प्रकरण में कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। ज्यादातर लोगों ने जजमेंट को पूरी तरह पढे बगैर भड़काऊ बयान दे दिए थे। उच्च न्यायालय के सामने पीडिता के प्राईमरी स्कूल का दस्तावेज पेश किया गया जिसके मुताबिक 12 फ़रवरी 2002 का जन्मदिन होते हुए घटना की तारीख 10 नवंबर 2021 को वह बालिग हो चुकी थी। पीडिता की मां अगले दिन कासगंज जिले के पतियाली थाने रपट दर्ज कराने गई लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। पोक्सो अधिनियम की धारा 21 के तहत बाल यौन हिंसा की रपट दर्ज न करने पर और धारा 22 के तहत झूठी शिकायत करने पर 6 माह की जेल की सजा का प्रावधान है।
एडवोकेट सोनिया राजपूत दिल्ली,
। Delhi [D/1765/2017]