मध्यप्रदेश की चालबाज़ी नाकाम, छत्तीसगढ़ का 32% आदिवासी आरक्षण फिलहाल सुरक्षित
मध्य प्रदेश शासन और भारत के अटॉर्नी जनरल की कोशिशें फ़िर नाकामयाब।
बुधवार 24 सितंबर की सुबह सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ और मध्य प्रदेश के आरक्षण संशोधन अधिनियमों को चुनौती की आखिरी सुनवाई की तारीखें अलगा दीं| मंगलवार की देर रात मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने फ़ोन कर के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को छग का पक्ष रखने की व्यवस्था की थी। आदिवासी मामलों के जानकार बी.के. मनीष ने चेताया था कि मध्य प्रदेश राज्य की साजिश से एसटी 32% आरक्षण और मुख्यमंत्री साय पर खतरे की तलवार लटक गई है।
मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार ने कांग्रेस से सहमति बना कर जबलपुर हाई कोर्ट में लंबित आरक्षण संशोधन अधिनियम 2019 की चुनौती का प्रकरण जुलाई में सुप्रीम कोर्ट में ट्रांस्फ़र करा लिया था| छग की तर्ज पर 50% की सीमा पार आरक्षण की अंतरिम राहत के लिए म.प्र. के सारे प्रकरण योगेश ठाकुर बनाम गुरु घासीदास अकादमी, रायपुर के साथ नत्थी किए गए हैं| पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ 27% ओबीसी आरक्षण के लिए अध्यादेश लाने और अगस्त 2019 में अधिनियम पारित कराने में सफ़ल रहे थे| जबलपुर हाई कोर्ट ने 2019 से ही इस पर ओबीसी आरक्षण को सीमित करते हुए कुल आरक्षण 50% के नीचे रखने की अंतरिम राहत दे रखी है| पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 27% ओबीसी आरक्षण के लिए अगस्त 2019 में अध्यादेश तो लाए लेकिन अधिनियम पारित कराने में नवंबर 2022 तक का समय लिया| तब से इस विषय पर दोनों संशोधन अधिनियमों पर अनुमति राजभवन, रायपुर में अटकी है और राजभवन सचिवालय के खिलाफ़ रिट याचिका बिलासपुर हाई कोर्ट में लंबित है| सुप्रीम कोर्ट में लंबित योगेश ठाकुर बनाम गुरु घासीदास अकादमी, रायपुर प्रकरण छग, आरक्षण संशोधन अधिनियम 2012 की चुनौती से संबद्ध है| राज्य निर्माण के बाद भी एससी-एसटी-ओबीसी के 16-20-14 आरक्षण के अन्याय के खिलाफ़ लंबे आदिवासी संघर्ष के बाद एसटी 32% आरक्षण मिल पाया था| पहले कुछ सतनामी समाज संगठनों और फ़िर ओबीसी, अनारक्षित वर्ग के पक्षकारों ने इस अधिनियम की वैधता को बिलासपुर हाई कोर्ट में चुनौती दी और सितंबर 2022 में सफ़ल हुए| तत्कालीन छग सरकार ने अपील में देर लगाई इसलिए कुछ निजी आदिवासी पक्षकारों ने हाई कोर्ट के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी| राज्य शासन ने एक माह बाद अपील फ़ाईल की, दो माह बाद सुनवाई कराई और चार महीने बाद भी अंतरिम राहत पाने में रहा था| अंतिम सुनवाई की तारीखें तय होने के बाद अचानक 1 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का फ़ैसला आने तक शुरु हो चुकी भर्तियों को पूरा कर लेने की अंतरिम राहत दे दी| इस अंतरिम राहत को बाद की भर्तियों और शिक्षा आरक्षण में भी राज्य शासन ने खुद विस्तारित कर लिया जिस पर चुनौती को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नहीं सुना गया|
सितंबर 2022 में बिलासपुर हाई कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद आदिवासियों से अन्याय करते हुए एससी-एसटी-ओबीसी के 16-20-14 आरक्षण रोस्टर से शिक्षा आरक्षण दिया गया था| हाई कोर्ट ने खुद भी प्रशासकीय आदेश के द्वारा मई 2023 से एससी-एसटी-ओबीसी के 16-20-14 आरक्षण रोस्टर से भर्तियां की हैं| एमबीबीएस की एसटी आरक्षित 110 सीटें छिन जाने के गुस्से का खामियाजा भूपेश बघेल ने सत्ता गंवा कर चुकाया| तकरीबन 12.6% एससी आबादी होने के बावजूद सतनामी समाज संगठन और उनके हितैषी 16% आरक्षण लेने और तकरीबन 31% आबादी को 20% आरक्षण पर धकेलने की जिद्द किए हुए हैं| मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी रमन सिंह की तरह भारत शासन के 2005 के निर्देश का पालन करते हुए ओबीसी आरक्षण को 6% किए जाने का साहस नहीं कर सकते| सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश का प्रकरण छग से नत्थी किए जाने का नुकसान यह था कि विशाल अनुसूचित क्षेत्रों के पहलू पर चर्चा छूट या दब जाती| छग, आरक्षण संशोधन अधिनियम 2012 अपास्त होते ही राजनैतिक साहस के अभाव में आदिवासियों के साथ 16-20-14 आरक्षण रोस्टर का अन्याय शुरु होगा और अलोकप्रियता का तर्क देकर मुख्यमंत्री साय की कुर्सी छिन जाएगी| फ़िलहाल यह खतरा टल गया है क्योंकि मध्य प्रदेश के मुकद्दमों में आखिरी सुनवाई 8 अक्टूबर से होगी और उसके खत्म हो जाने के बाद छग प्रकरणों के लिए तारीख तय की जाएगी|