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किसी ‘ पद ‘ के लिए नहीं थी 80 हजार किलोमीटर की उनकी पदयात्रा, आज 11 सितम्बर को उनकी जयंती  (आलेख : स्वराज करुण )

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उनकी वह ऐतिहासिक पदयात्रा किसी ‘पद’ के लिए नहीं थी। मानवता के कल्याण की भावना के साथ लगभग एक दशक में 80 हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा कोई मामूली बात नहीं थी। वह देश भर में करोड़ों भूमिहीनों के पक्ष में बड़े -बड़े भू -स्वामियों को भूमि दान के लिए प्रेरित करने निकले थे। वह आगे बढ़ते गए, लोग साथ जुड़ने लगे और उनका काफ़िला बनता चला गया। भूमि जैसी प्राकृतिक सम्पदा पर सबका समान अधिकार हो , जिनके पास हजारों एकड़ ज़मीन है ,वो अपनी अतिरिक्त ज़मीन भूमिहीनों के लिए सरकारों को दान में देकर पुण्य के सहभागी बनें ,यह उनकी इस पद यात्रा का उद्देश्य था । हम बात कर रहे हैं महात्मा गाँधी के अभिन्न सहयोगी और सर्वोदय विचारधारा के युग प्रवर्तक आचार्य विनोबा भावे की। आज विनोबा जी को उनकी जयंती पर विनम्र नमन ।

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          विनायक से बने विनोबा 

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 विनोबा जी का मूल नाम विनायक नरहरि भावे था ,लेकिन वह आगे चलकर ‘विनोबा’ के नाम से लोकप्रिय हुए। उनका जन्म 11 सितम्बर 1895 को महाराष्ट्र के ग्राम गोदेद में (जिला -रायगढ़ )में और निधन 15 नवम्बर 1982 को महाराष्ट्र के ही पवनार (वर्धा ) में हुआ था । उनका पवनार आश्रम सर्वोदय आंदोलन का केन्द्र था। उन्हें भारत सरकार ने मरणोपरांत 1983 में देश के सर्वोच्च नागरिक अलंकरण ‘ भारत रत्न ‘ से सम्मानित किया था । उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया गया था ।

      लेकिन खेद का विषय है कि आज जबकि देश में भूमिहीनता की समस्या बढ़ती जा रही है ,तब ऐसे कठिन समय में हमने उनके महान और ऐतिहासिक भूदान आंदोलन को लगभग भुला ही दिया है ,जिसे उन्होंने ‘भूदान यज्ञ ‘ का नाम दिया था।

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    मानव निर्मित है भूमिहीनता की समस्या 

      दरअसल देश और समाज में भूमिहीनता की समस्या मानव निर्मित है । एक तरफ तो मुट्ठी भर लोगों के पास लाखों एकड़ जमीन है , तो वहीं दूसरी तरफ़ लाखों लोगों के पास स्वयं की एक इंच भी भूमि नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति देश में सामाजिक और आर्थिक विषमता के साथ जन -आक्रोश को भी जन्म देती है। विनोबा जी ने देश की आज़ादी के पहले और बाद में भी इस पर चिंतन किया था।

       शांतिपूर्ण समाधान का रास्ता : भूदान 

    उन्होंने भारतीय समाज में भूमिहीनता की इस समस्या के शांतिपूर्ण समाधान के लिए भूदान यज्ञ का रास्ता निकाला। इसके माध्यम से उन्होंने देश भर में पैदल घूम -घूम कर लोगों को समझाया कि जिसके पास अपनी ज़रूरत से ज़्यादा ज़मीन है ,वह अपनी अतिरिक्त ज़मीन सरकार के खाते में दान कर दे ,ताकि सरकार उसे भूमिहीनों में वितरित कर सके ।

     स्वैच्छिक भूमि -सुधार आंदोलन 

 विनोबा जी का भूदान यज्ञ एक स्वैच्छिक भूमि सुधार आंदोलन था ,जो अगर कुछ वर्ष और चलता तो शायद देश में भूमिहीनता की समस्या काफी हद तक कम हो चुकी होती ।

           यज्ञ में ‘आहुति ‘ की प्रेरणा

       उन्होंने वर्ष 1951 से 1962-63 तक देश भर में लगभग 80 हजार किलोमीटर की पैदल यात्रा की । गाँव -गाँव में भूमि स्वामियों को भूदान की प्रेरणा दी । विनोबा जी जहाँ -जहाँ भी ठहरते ,वहाँ छोटी -छोटी सभाओं का आयोजन करके सम्पन्न भू स्वामियों को इस यज्ञ में आहुति के रूप में भूमि दान के लिए प्रोत्साहित करते थे। । उनकी इस समझाइश का व्यापक और सकारात्मक असर हुआ।

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   दान में मिली 41.62 लाख एकड़ से ज्यादा जमीन 

  विभिन्न राज्य सरकारों के पक्ष में 30 सितम्बर 1962 तक 5 लाख 30 हजार से कुछ ज्यादा दानदाताओं से 41 लाख 62 हजार 623 एकड़ जमीन दान में मिली ।

   पूर्व प्रधानमंत्री ने भी किया था भूदान 

मैंने हाल ही में एक वेबपोर्टल में पढ़ा कि देश के पूर्व प्रधानमंत्री और उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय विश्वनाथ प्रताप सिंह भी विनोबा जी के भूदान यज्ञ से प्रभावित हुए थे । उन्होंने अपनी माण्डा रियासत के यमुनापार और फूलपुर की अपनी खेती की 30 हजार बीघा भूमि दान कर दी थी। (कृपया देखें अरविंद कुमार सिंह का आलेख www. Up80.online दिनांक 26 जून 2020)

         हुआ था भूदान समितियों का गठन 

     बहरहाल ,हम चर्चा कर रहे थे विनोबा जी के भूदान आंदोलन में भूस्वामियों से सरकारों को प्राप्त 41 लाख 62 हजार एकड़ जमीनों के बारे में। मिली जानकारी के अनुसार इसके वितरण के लिए हर राज्य में तत्कालीन सरकारों की ओर से भूदान समितियों का गठन किया गया था । इन समितियों के जरिये इनमें से 11 लाख 20 हजार एकड़ जमीन का वितरण 3 लाख 14 हजार भूमिहीनों में किया गया । विनोबाजी ने अपने इस आंदोलन को भूदान यज्ञ का नाम दिया था ।यह उनके इस पवित्र यज्ञ का ही असर था कि उस दौरान देश के अधिकांश राज्यों में भूदान क़ानून भी बनाया गया ।

   आज कहाँ है बाकी 30.42 लाख एकड़ भूमि ?

    सवाल यह है कि भूदान में प्राप्त 41 लाख 62 हजार एकड़ ज़मीनों में से अगर 11 लाख 20 हजार एकड़ का ही वितरण हुआ और वह भी 3 लाख 14 हजार परिवारों को , तो शेष 30 लाख 42 हजार एकड़ भूमि आज कहाँ है ? यह शोध का विषय है ! उसका पता लगाकर जरूरतमन्द भूमिहीन परिवारों में उसका वितरण होना चाहिए। । कुछ भूमि सार्वजनिक प्रयोजन के लिए सुरक्षित रखकर उस पर पर्यावरण की दृष्टि से सघन वृक्षारोपण भी किया जा सकता है ।

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        राज्यों में भूदान बोर्ड भी बनाए गए थे

विनोबा जी के प्रभाव से अधिकांश राज्यों में भूदान बोर्ड जैसी संस्थाओं का भी गठन हुआ था । अब शायद ये बोर्ड इतिहास बन चुके हैं ।

   संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार की एक स्वायत्त निकाय है गांधी स्मृति एवम् दर्शन समिति ,जिसकी वार्षिक पत्रिका ‘ अनासक्ति दर्शन ‘ के जुलाई 2010 – जून 2011 के अंक में विनोबा जी के भूदान और ग्राम दान आंदोलन पर डॉ. पराग चोलकर सहित कई विद्वानों के आलेख संकलित हैं । इन आलेखों से विनोबा जी के भूदान यज्ञ की महत्ता और पवित्रता का पता चलता है। मैंने ये आंकड़े डॉ. पराग के आलेख से ही लिए हैं।

      छत्तीसगढ़ भी आए थे विनोबाजी 

     उनके आलेख से यह भी मालूम हुआ कि विनोबाजी पदयात्रा करते हुए दिसम्बर 1963 में छत्तीसगढ़ भी आए थे और रायपुर में आयोजित सर्वोदय सम्मेलन में शामिल हुए थे । इसी सम्मेलन में सुलभ ग्रामदान ,ग्रामभिमुख खादी और शांति सेना का तीन सूत्रीय राष्ट्रीय कार्यक्रम का प्रस्ताव मंजूर किया गया था ।इसके आधार पर पूरे देश में ‘ ग्राम स्वराज्य ‘ आंदोलन के विस्तार का भी निर्णय लिया गया था ।

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आलेख –स्वराज करुण

(मामूली संशोधन के साथ Repost)

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